कन्हैया कुमार पर राजद्रोह केस में मुकदमा चलाने की मंजूरी राजद्रोह कानून की अपनी समझ में दिल्ली केजरीवाल ने खुद ही उनकी तारीफ में कहा था, गया, जिसके बावजूद भी मंजूरी नहीं दी गई. सरकार भी केंद्र सरकार से कम अनजान नहीं है. कन्हैया ने कितना शानदार भाषण दिया है. लेकिन दिल्ली के दंगो और आईबी अधिकारी की हत्या के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व राजद्रोह के लिए केस की मंजूरी देने के बाद आरोप में आप पार्षद ताहिर मोहम्मद के फंसने के अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर राजद्रोह केस में मुकदमा उनकी आलोचना भी हो रही है. फिल्म निर्देशक बाद, मुस्लिमपरस्ती के आरोप से बचने के लिए, चलाने की मंजूरी पर पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अनुराग कश्यप जैसे लोगों ने केजरीवाल की आपाधापी में यह फैसला लिया गया लगता है. ये बात कही. चिदंबरम की तरफ से ही नहीं बल्कि आलोचना की है. हालांकि मुख्यमंत्री भले ही अपनी फैसला लेने में दिल्ली सरकार को साल भर क्यों दूसरे हलकों से भी इस मंजूरी के पीछे केजरीवाल सफाई में ये कहें कि दिल्ली का अभियोजन विभाग लग गए, विराग गुप्ता इस पर भी सवाल उठाते सरकार की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं. स्वतंत्र होकर काम करता है लेकिन क्या वाकई हैं, अगर इन्हें इतनी ही चुस्ती से इसे हैंडल करना ये भी पूछा जा रहा है कि उन्होंने ये मंजूरी देने में ऐसा है? जानकार बताते हैं कि एक बार पब्लिक था तो जब ये मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इतनी देर क्यों की. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल प्रॉसिक्यूटर की नियुक्ति हो जाने के बाद तो वो में गया था, तब उन्होंने कार्रवाई क्यों नहीं की. ने कन्हैया कुमार केस पर अपना पक्ष रखते हुए स्वतंत्र रूप से काम करता है लेकिन मंजूरी के साल भर तक इसे लटकाया क्यों रखा गया. अब चार फरवरी को एबीपी न्यूज से कहा था, इसमें मामलों में भले ही कानूनी सलाह के बाद ही अचानक ऐसी कौन सी नई बात सामने आ गई दिल्ली के मुख्यमंत्री या किसी मंत्री की कोई निर्णय लिया जाता हो पर अंतिम फैसला तो चुनी कि फैसला ले लिया गया. जब आप कहते हैं कि भूमिका नहीं है. ये मंजूरी दिल्ली का प्रॉसिक्यूशन हुई सरकार का होता है और उसकी अपनी हमारे यहां निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज है तो साल डिपार्टमेंट देता है जो पूरी तरह से स्वतंत्र होकर राजनीतिक बाध्यताएं होती हैं. कानूनन केजरीवाल भर इंतजार करने का क्या मतलब? दिल्ली काम करता है. जैसे जज काम करते हैं, वैसे ही सरकार पर मंजूरी के फैसले की कोई बाध्यता सरकार के फैसले के बाद कन्हैया कुमार ने वो लोग काम करते हैं. इसमें हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं थी, वो चाहती तो इसे नामंजूर भी कर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, दिल्ली पुलिस और नहीं होता है. पर क्या सचमुच ऐसा है और सकती थी या फिर यथास्थिति बनाए रख सकती सरकारी वकीलों से आग्रह है कि इस केस को राजद्रोह के मामले में कानूनी प्रक्रिया अब गंभीरता से लिया जाए, क्या है? इसमें दिल्ली सरकार और फॉस्ट ट्रैक कोर्ट में स्पीडी ट्रायल पुलिस की भूमिका क्या है? हमने इन्हीं हो और ज्ट वाली आपकी सवालों को समझने की कोशिश की अदालत की जगह कानून की है. कन्हैया कुमार के केस में कानूनी अदालत में न्याय सुनिश्चित किया प्रक्रिया का सवाल पिछले साल जाए. सेडिशन केस में फास्ट ट्रैक जनवरी में भी उठा था. तब दिल्ली कोर्ट और त्वरित कार्रवाई की हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की मंजूरी जरूरत इसलिए है ताकि देश को के बिना चार्जशीट फाइल करने पर पता चल सके कि कैसे सेडिशन पुलिस को डांटते हुए पूछा था, आपने कानून का दुरूपयोग इस पूरे बिना मंजूरी के चार्जशीट फाइल क्यों मामले में राजनीतिक लाभ और की? क्या आपके यहां कोई विधि लोगों को उनके बुनियादी मसलों विभाग नहीं है. राजद्रोह के मामलों में से भटकाने के लिए किया गया प्रक्रिया के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की है. इसमें कोई दो राय नहीं कि एडवोकेट शाहरुख आलम कहती हैं, थी.कन्हैया कुमार पर राजद्रोह के मामले में कन्हैया कुमार का मामला राजद्रोह कानून की जरूरत और बेजा इस्तेमाल पहले सरकार की मंजूरी जरूरी होती है. क्योंकि तकरीबन तीन साल की जांच पड़ताल के बाद की बहस से भी जुड़ा हुआ है लेकिन विराग गुप्ता ये राज्य के खिलाफ एक गंभीर अपराध है. वैसे तो दिल्ली पलिस ने जनवरी, 2019 में चार्जशीट एक और दिलचस्प सवाल की तरफ ध्यान दिलाते एक आर दिलचस्प सवाल क सभी आपराधिक मामलों में राज्य एक पक्ष होता है फाइल की. दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के पास है. वे कहत ह, कानून आर व्यव क्योकि कानन और व्यवस्था बनाए रखना राज्य मंजरी के लिए भी हाई कोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली पुलिस कद्र सरकार क अधान, लाकन की जिम्मेदारी होती है. राजद्रोह या राज्य के गई थी. तब से ये मामला दिल्ली की अरविंद अभियोजन विभाग पर अधिकार पर भी कई सवाल खिलाफ युद्ध छेड़ने, जैसे मामलों में अभियोजन केजरीवाल सरकार के पास लंबित था इसी साल खड़े हो रहे हैं. यदि अभियोजन विभाग दिल्ली शुरू करने से पहले मंजूरी इसलिए मांगी जाती है चार फरवरी को मख्यमंत्री केजरीवाल ने एक सरकार के अधीन है तो फिर आपराधिक मुकदमों ताकि वैसे मामले साफ हो जाएं जो गंभीर किस्म इंटरव्य में ये स्पष्ट कर दिया था कि आने वाले में सरकारी वकील नियुक्त करने का अधिकार भी हस्सा ह, जस हा राज्य कुछ समय में इस पर अभियोजन विभाग निर्णय ले दिल्ली सरकार के पास ही होना चाहिए लेकिन इस बात की पुष्टि करता है कि हम इस भाषण लेगा. मंजूरी के फैसले की टाइमिंग को लेकर निर्भया मामले में दोषियों के खिलाफ केंद्र सरकार को राजद्रोह की प्रकृति का मानते हैं या फिर सवाल उठ रहे हैं सप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग के माध्यम से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में किसी काम को हम वास्तव में राज्य के खिलाफ गप्ता कहते हैं, कन्हैया कमार के मामले में दिल्ली याचिका दायर की गई दिल्ली दंगों से संबंधित युद्ध छेड़ना मानते हैं, तभी अभियोजन की पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. दिल्ली पुलिस केंद्र मामलों में हाई कोर्ट के सामने सुनवाई के लिए वास्तविक कारवाई शुरू होती है. एफआईआर बिना सरकार के मातहत है. लेकिन राजद्रोह के मामले केंद्र सरकार ने सालासटर जनरल का नियुक्ति मंजूरी के रजिस्टर होती है, चार्जशीट भी दाखिल में अभियोजन विभाग को मंजरी के बाद ही मामला लिए नोटिफिकेशन जारी किया है जिससे न अदालत का कायवाही सरकार का आगे बढ़ता है, जो दिल्ली सरकार के मातहत है. अभियोजन विभाग पर दिल्ली सरकार के अधिकार क बिना शुरु नहा हागा, बल पर जल स दिल्ली सरकार इस मामले को लंबे समय से पर असमजस की स्थिति बन रही है. रिहा होने के बाद जेएनयू में दिए गए कन्हैया पेंडिंग रखे थी. दिल्ली सरकार के अनिर्णय के कुमार के पहले भाषण पर कभी मुख्यमंत्री अरविंद खिलाफ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी मामला
कन्हैया कुमार पर राजद्रोह केस में मुकदमा चलाने की मंजूरी