दिल्ली हिंसा मारे गए हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल

 रतनलाल अपनी पत्नी पूनम और बच्चे के साथ ताराख रतन लाल तीन भाइयों में सबसे बड़े थे. मंझले भाई मनीष बताते हैं, पिछली बार जब शाहीन बाग और 24 फरवरी. दिन सोमवार. दिल्ली पुलिस के हेड दिनेश गांव में गाडी चलाते हैं और छोटे भाई मनोज सीलमपुर में प्रोटेस्ट शुरू हआ था, तब भी मामा वहां कान्स्टबल रतन लाल क लिए यह एक आम सा दिन बेंगलुरु में एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. रतन तैनात किए गए थे. ड्यूटी पर उनके हाथ में चोट भी था. बरसों की आदत के मुताबिक उन्होंने सोमवार का लाल की मां संतरा देवी सीकर में ही दिनेश के साथ लगी थी. लेकिन वो पुलिस वाले सिर्फ ड्यूटी पर होते व्रत रखा हआ था. सुबह 11 बजे वह अपने दफ्तर यानी रहती हैं दिलीप ने हमें बताया कि रतन लाल की मां थे. जैसे ही घर के इलाके में घुसते थे, आम आदमी बन गोकुलपुरी एसीपी ऑफिस के लिए रवाना हो गए. अभी सीकर में ही हैं और उन्हें भी इस घटना के बारे में जाते थे. आपने रौब झाड़ने वाले पुलिस वाले देखे होंगे, ब घड़ी ने फिर सुबह क 11 बजाए, कुछ नहीं बताया गया है. रतन लाल के तीन बच्चे हैं. जिन्हें देखते ही डर लगने लगता है. मामा बिल्कुल ऐसे तब बीबीसी रतनलाल के घर के दरवाजे पर खड़ा है. दी लेखी परी 11 साल की हैं छोटी बेटी कनक बड़ी बेटी परी 11 साल की हैं. छोटी बेटी कनक आठ नहीं थे. दफ्तर और पुलिस की बातें घर लेकर नहीं चद घटा में यहा का नजारा बदल चुका है, क्योकि साल की हैं और एक बेटा राम पाँच साल का है. तीनों आते थे. रतन लाल के जो पडोसी उनके हंसमख नागरिकता संशोधन कानून के विरोधियों और समर्थको केंद्रीय विद्यालय में पढ़ते हैं. जैसे ही घर के आस-पास स्वभाव की तारीफ करते नहीं थक रहे, वो मीडिया से क बाच हुइ हसा न रतनलाल का लाल लिया. लोग इकट्ठे होने शुरू हुए, इन बच्चों को पड़ोसियों के बहुत नाराज हैं. उन्होंने बताया कि सोमवार रात 11 उत्तर-पूर्वी दिल्ली के चाद बाग, भजनपुरा, बृजपुरा, घर भेज दिया गया. इन तीनों में से सिर्फ परी को ही बजे के आसपास मीडिया के कुछ लोग रतन लाल के गोकुलपुरी और जाफराबाद में हुई इस हिंसा में अब पता है कि उनके पापा अब कभी नहीं लौटेंगे. रतन घर आ गए और उनके सोते हुए बच्चों को जगाकर तक रतन लाल समेत सात लोगों फोटो खींचने लगे. वो हैरान हैं कि की मौत हो चुकी है और 90 से आखिर मीडिया वाले ऐसा कैसे कर ज्यादा लोग घायल हैं. रतन लाल सकते हैं. लोगों में गुस्सा इस बात के घर पहुंचने पर हमारी उनके को लेकर भी है कि जब दिल्ली जैसे ताऊ के बेटे दिलीप और भांजे शहर में खुद पुलिस वाले सुरक्षित मनीष से बात हुई. दोनों ने बताया नहीं हैं, तो आम लोगों का क्या ही कि रतन लाल की पत्नी पूनम को कहा जा सकता है. रतनलाल के अभी तक नहीं बताया गया है कि पड़ोसी कहते हैं कि जो लोग उन्हें उनके पति अब इस दुनिया में नहीं नाम से नहीं जानते थे, वो मूंछों से हैं. लेकिन घर के अंदर से आ रहीं जरूर जानते थे घर के आसपास पूनम की चीखें इस बात की इकट्ठा लोग दबी जुबान में कह रहे हैं तस्दीक कर रही हैं कि उन्हें इस कि जब तक मांगें नहीं मानी जातीं, अनहोनी का अंदाजा हो गया है। तब तक वो रतन लाल का अंतिम अभी तो उन्होंने शादी की 16वीं संस्कार नहीं करेंगे. जब हमने दिलीप सालगिरह मनाई थी. रतन लाल ने 1998 में नौकरी लाल के रिश्तेदारों से बात करते हुए हमें पता चला कि से रतन लाल के परिवार की मांगों के बारे में पछा, तो जॉइन की थी और तब उन्हें दिल्ली पुलिस की ओर से उन्होंने पाँच साल पहले लोन लेकर बुराड़ी के अमृत उन्होंने बताया हमारी मांग सीधी है. भाई को शहीद रॉबर्ट वाडा की सिक्यॉरिटी में तैनात किया गया था. दो विहार में घर बनवाया था. संकरी गलियों के अंदर बने का दर्जा दिया जाए. क्योंकि वो अपने लिए नहीं, बल्कि साल पहले ही प्रमोशन के बाद वह हेड कॉन्स्टेबल बने इस घर की दीवारों पर अभी तक पुताई भी नहीं हुई है. लोगों को बचाने के लिए मरे हैं. भाभी को सरकारी थे. रतन लाल के भाई दिलीप सराय रोहिल्ला के पास आज इसी घर के बाहर पचासों जोड़ी चप्पलें रखी हुई नौकरी दी जाए और तीनों बच्चों की पढाई-लिखाई रहते हैं. उन्होंने हमें बताया, कल जब बच्चे ट्यूशन के हैं. जिस दरवाजे पर लोगों का जमघट लगा है, वहां से का परा इंतजाम किया जाए. लेकिन यह सब बहुत लिए चले गए थे, तब पूनम ने टीवी पर खबर सुनी कि एक ब्लैक बोर्ड दिख रहा है, जिस पर बच्चों ने चॉक से आगे की बातें हैं. रतन लाल के परिवार को अभी तक रतन लाल को गोली लग गई है. तब तक टीवी पर कुछ लकीरें खींच रखी हैं. पुराने मॉडल का एक यही नहीं पता है कि उनके साथ हआ क्या है! सिर्फ खबर ही आ रही थी. रतन लाल की फोटो नहीं कंप्यूटर भी रखा है. पूनम जिस बेड पर बैठी हैं, उस पर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी नहीं है. पिछली रात श्आपश् थी. फिर शायद पड़ोसियों ने पूनम का टीवी बंद करा उन्हें संभालने के लिए और भी महिलाएं बैठी हैं. पूनम विधायक संजीव झा परिवार से मिलने आए थे, लेकिन दिया. तब से टीवी बंद ही है. सीकर में रहने वाली चीख-चीखकर रोती हैं, दहाड़ें मारती हैं और बार-बार दिल्ली पलिस की ओर से परिवार को अब तक कोई रतनलाल की मां को भी इस बारे में कोई जानकारी बेहोश हो जाती हैं. टीवी देखने के बाद से उन्होंने कुछ जानकारी नहीं दी गई है. यहां के लोग सोशल मीडिया नहीं दी गई है. जहांगीर पुरी में रहने वाले रतन लाल भी नहीं खाया है. कोई खाने को कहता है, तो कहती पर बहत ऐक्टिव हैं. तकरीबन सभी के पास हिंसा से के भांजे मनीष बताते हैं, पदल्ली में जो दंगे हो रहे हैं, हैं, जब वो आ जाएंगे, तो उन्हीं के साथ खाऊंगी. जडे फोटो, वीडियो, खबरें, अफवाहें... न जाने उनके बारे में तो हमें पता ही था. ये भी पता था कि रतनलाल के घर के बाहर इकट्ठा सभी लोग उनकी क्या-क्या और कितना कितना आ रहा है. लोग अभी मामा की ड्यटी वहीं लगी है. जब हमने टीवी में सुना तारीफ करते नहीं थक रहे. संकरी गलियों में बने इस इन्हीं के भरोसे हैं, क्योंकि एक शखस, जिस पर वो कि रतन लाल को गोली लग गई, तो हमें लगा कि घर तक पहुंचने के लिए हमें कई लोगों से रास्ता सबसे जयादा भरोसा करते थे. वह अब उनके बीच दिल्ली पलिस में एक ही रतन लाल थोड़ी न हैं. लेकिन पूछना पड़ा. लोगों ने रास्ता तो बताया ही, साथ ही नहीं है फिर थोड़ी देर बाद फेसबुक वगैरह देखकर हमें पता अपने-अपने हिस्से के रतन लाल के बारे में भी बताया. चल गया कि मामा को गोली लगी है. हम तुरंत यहां यहां कोई यह कहते नहीं थक रहा कि रतन लाल बहत चले आए, लेकिन मामी को अभी हम लोगों ने बताया बढ़िया आदमी थे. बड़े मिलनसार थे. जो उन्हें नाम से नहीं है. राजस्थान के सीकर के रहने वाले 44 साल के नहीं जानता था, वो मूंछों से तो पहचान ही जाता था.


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